भारतीय राजनीति में बयानबाजी का दौर हमेशा चलता रहता है, लेकिन जब यह बयान किसी राजनीतिक रणनीतिकार के पास आता है तो उसका पतन और भी बढ़ जाता है। हाल ही में चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (पीके) ने Congress और राहुल गांधी को लेकर एक तीखा बयान दिया। उन्होंने कहा, ”राहुल गांधी को बिहार के 40वें मंदिर का नाम तक वापस नहीं मिलेगा.” यह बयान केवल कांग्रेस की कार्यशैली पर सवाल उठाता है, बल्कि बिहार की राजनीति में उसकी स्थिति भी आइना तय करती है।
प्रशांत किशोर का तीखा युद्ध
प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी और कांग्रेस पर सीधा हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस के पास ज़मीनी हकीकत की जानकारी ही नहीं है। उनका तर्क था कि अगर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही बिहार के 40 कार्यकर्ताओं के नाम नहीं जानता, तो वह राज्य की असली बातें कैसे समझेंगे?
राहुल गांधी पर व्यक्तिगत सवाल
पीके का यह बयान राहुल गांधी की राजनीतिक समझ और उनके जानकारों पर सीधा सवाल है। बार-बार राहुल गांधी का यह आरोप लग रहा है कि वे राज्यों की गहराई की तैयारी नहीं कर रहे हैं। पैसिफिक टीनएजर्स ने एक ही मुद्दे को और रेटिंग्स को रिजर्व में रखा।
बिहार की राजनीति में कांग्रेस की स्थिति
बिहार में कांग्रेस हमेशा से एक सहयोगी दल बनी हुई है। राजद की तरह लोकतांत्रिक, कांग्रेस का जनाधार कमजोर हो रहा है। पीके का मानना है कि कांग्रेस को अगर बिहार में पैर रखा जाए, तो एकमात्र गठबंधन पर उदारता से काम नहीं चलेगा, बल्कि नेतृत्व को ज़मीनी हकीकत समझनी होगी।
प्रशांत किशोर की भूमिका और अनुभव
याद दिला दें कि पैसिफिक टीनएजर्स वर्ड पर्सनल 2014 और 2015 के बड़े चुनाव अभियानों में अहम रणनीति बनाई गई थी। नरेंद्र मोदी की 2014 की जीत से लेकर नीतीश कुमार की 2015 की जीत तक, पीके की भूमिका अहम रही। ऐसे में उनके बयान में महज़ एक आरोप नहीं बल्कि अनुभवजनित आलोचना भी हो सकती है।
कांग्रेस की स्थिरता हार
पिछले एक दशक में कांग्रेस ने कई राज्यों में बड़े पैमाने पर चुनाव गंवाए हैं। बिहार भी उनमें से एक है। पीके का कहना है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि नेतृत्व राज्य की पकड़ में नहीं आ रहा है। राहुल गांधी के बिहार के अपमान के बारे में अनभिज्ञता होना उसी कमी का प्रतीक है।
स्थानीय धार्मिक से दूरी
बिहार में बाढ़, बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे गंभीर मुद्दे हैं। लेकिन पीके का आरोप है कि कांग्रेस के नेता इन विचारों पर उंगली उठाने की कोशिश ही नहीं करते. यदि राहुल गांधी के पास समर्थकों की जानकारी नहीं है, तो वे स्थानीय उद्यमों पर प्रभावी रणनीति कैसे बना सकते हैं?
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बनाम बिहार
राहुल गांधी ने अपनी “भारत जोड़ो यात्रा” के जरिए एकजुट होकर लोगों से जुड़ने की कोशिश की। लेकिन पीके का कहना है कि बिहार में कांग्रेस की पकड़ बेहद कमजोर है। यात्रा से चर्चा तो मिली, लेकिन बिहार की राजनीति में उनका कोई बड़ा असर नहीं दिखा
प्रशांत किशोर का विकल्प का संकेत
पीके बार-बार यह संकेत देते हैं कि कांग्रेस अगर सच में स्ट्रैटजी रखती है तो उसे अपने नेतृत्व और रणनीति दोनों में बदलाव करना होगा। उनके अनुसार, बिहार की तरह राज्य में बिना ज़मीनी कनेक्शन के कोई भी पार्टी आगे नहीं बढ़ सकती।
बिहार में पीके के एक्टिविस्ट
प्रशांत किशोर खुद बिहार में “जन सुराज अभियान” चला रहे हैं और लगातार गांव-गांव जनता से मिल रहे हैं। उनका कहना है, कांग्रेस जैसी पार्टी को भी इसी तरह जनता तक पहुंचना होगा। बस दिल्ली से बयान देने या रेलवे कंपनियों को करने से काम नहीं चलेगा।
राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए संदेश
पीके का यह बयान कांग्रेस के लिए एक सख़्त चेतावनी है। संदेश साफ है- अगर पार्टी बिहार या किसी भी राज्य में है तो उसे अपने नेतृत्व को स्थानीय स्तर पर तैयार करना होगा। असल में बड़े नेताओं के शामिल होने से चुनाव नहीं जीता जा सकता।
निष्कर्ष
प्रशांत किशोर के इस बयान में एक बार फिर कांग्रेस की रणनीति और राहुल गांधी की राजनीतिक छवि को केंद्र में लेकर चर्चा की गई है। बिहार जैसे राज्य में जहां राजनीति बेहद पेचीदा है, वहां ज़मीनी खेती और स्थानीय समझ सबसे बड़ा हथियार है। अगर राहुल गांधी वास्तव में बिहार की राजनीति में अपनी जगह बनाना चाहते हैं, तो उन्हें आदर्श की पहचान लेकर जनता की मौजूदगी से गहराई तक पता चलेगा। अन्यथा, पैसिफिक किशोर जैसे आलोचक अपनी राजनीतिक साख पर लगातार प्रश्न बोलते रहते हैं।