Bihar Elections: मुस्लिम-यादव समीकरण पर क्या बोले Prashant Kishor?

By: Rebecca

On: Monday, September 8, 2025 6:28 AM

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बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और सामाजिक गठजोड़ों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण को कई दशकों से बिहार की राजनीति का सबसे मजबूत वोट बैंक माना जाता है। हाल ही में Bihar Elections प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने इस समीकरण पर अपनी राय रखते हुए कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं, जिन पर चर्चा ज़रूरी है।

मुस्लिम-यादव समीकरण का ऐतिहासिक महत्व

बिहार में मुस्लिम और यादव वोट बैंक का गठजोड़ लंबे समय से मजबूत माना जाता है। लालू प्रसाद यादव के दौर से ही यह समीकरण आरजेडी (RJD) की राजनीतिक ताकत की रीढ़ रहा है। किशोर का कहना है कि इस समीकरण ने बिहार की राजनीति को दशकों तक प्रभावित किया है और चुनावी जीत-हार में अहम भूमिका निभाई है।

बदलते समय में समीकरण की प्रासंगिकता

Prashant Kishor का मानना है कि राजनीति में सिर्फ एक समीकरण पर निर्भर रहना अब पुराना मॉडल हो गया है। उन्होंने कहा कि समाज का बड़ा हिस्सा बदलाव चाहता है और नए मुद्दे जैसे शिक्षा, रोजगार और विकास अब वोटरों के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।

युवा मतदाताओं की बदलती सोच

बिहार में बड़ी संख्या में युवा मतदाता हैं जो परंपरागत जातीय राजनीति से हटकर अपनी प्राथमिकताओं को देख रहे हैं। किशोर का कहना है कि यह युवा वर्ग अब विकास, नौकरियों और बेहतर सुविधाओं की मांग करता है और यही आने वाले चुनाव में बड़ा फैक्टर साबित हो सकता है।

मुस्लिम वोट बैंक की स्थिति

    किशोर ने यह भी इशारा किया कि मुस्लिम समुदाय अब सिर्फ एक पार्टी के साथ बंधा नहीं रहना चाहता। वे सुरक्षा, शिक्षा और रोज़गार जैसे मुद्दों पर भी ध्यान दे रहे हैं। इसका मतलब है कि मुस्लिम वोट बैंक अब पूरी तरह से एकतरफा नहीं है और यह अन्य पार्टियों की ओर भी झुक सकता है।

    यादव वोट की मजबूती और सीमाएँ

    यादव समुदाय बिहार का बड़ा वोट बैंक है और आरजेडी का पारंपरिक आधार भी। लेकिन किशोर का कहना है कि यादव वोट अकेले किसी पार्टी को सत्ता तक नहीं पहुँचा सकता। इसके लिए व्यापक सामाजिक गठजोड़ और अन्य समुदायों का समर्थन ज़रूरी है।

    जातीय समीकरण से परे विकास का एजेंडा

    Prashant Kishor लगातार यह कहते आ रहे हैं कि बिहार की राजनीति को जातीय समीकरण से बाहर निकालने की ज़रूरत है। उनका मानना है कि अगर नेता सिर्फ जाति और धर्म की राजनीति करेंगे, तो राज्य विकास की दौड़ में हमेशा पीछे रह जाएगा।

    क्षेत्रीय दलों की भूमिका

    बिहार में छोटे और क्षेत्रीय दल भी मुस्लिम-यादव समीकरण को चुनौती दे सकते हैं। किशोर ने कहा कि कई नई राजनीतिक ताकतें धीरे-धीरे उभर रही हैं और वे पारंपरिक समीकरण को तोड़ सकती हैं।

    बीजेपी और एनडीए की रणनीति

    किशोर के मुताबिक, बीजेपी और उसके सहयोगी दल इस समीकरण को तोड़ने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। वे विकास, महिला सशक्तिकरण और गरीबों को सीधे लाभ पहुँचाने जैसी योजनाओं पर ज़ोर देकर इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।

    2025 चुनाव पर संभावित असर

    अगर मुस्लिम-यादव समीकरण पहले जैसा मजबूत नहीं रहा, तो 2025 के बिहार चुनाव का परिणाम काफी हद तक बदल सकता है। किशोर का कहना है कि किसी भी पार्टी के लिए सिर्फ MY समीकरण पर निर्भर रहना अब जीत की गारंटी नहीं है।

    प्रशांत किशोर का संदेश मतदाताओं को

    अंत में किशोर ने साफ़ कहा कि बिहार की जनता को जातीय राजनीति से ऊपर उठकर विकास और भविष्य की राजनीति करनी चाहिए। उनका संदेश है कि अगर बिहार को वास्तव में आगे बढ़ाना है तो शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार को ही चुनावी मुद्दा बनाया जाए।

    निष्कर्ष

    Prashant Kishor की बातें यह साफ़ संकेत देती हैं कि 2025 के बिहार चुनाव सिर्फ पुराने वोट बैंक समीकरणों पर नहीं लड़े जाएंगे। मुस्लिम-यादव समीकरण अब भी अहम है, लेकिन इसके साथ-साथ अन्य फैक्टर – जैसे युवा मतदाताओं की सोच, विकास का एजेंडा और क्षेत्रीय दलों की रणनीति – भी चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाएँगे। बिहार की राजनीति एक नए मोड़ पर है और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मतदाता इस बार जातीय सीमाओं को पार कर विकास की ओर बढ़ते हैं या नहीं।

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