बिहार की राजनीति Heats Up: क्या 2025 से पहले महागठबंधन में बड़ी दरार आ रही है?

By: Rebecca

On: Tuesday, July 29, 2025 7:23 AM

बिहार की राजनीति Heats Up: क्या 2025 से पहले महागठबंधन में बड़ी दरार आ रही है?
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बिहार की राजनीति हमेशा से ही उतार-चढ़ाव और नए समीकरणों का केंद्र रही है। जैसे-जैसे 2025 का विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है, राज्य में राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज़ हो चुकी हैं। खासकर महागठबंधन में उठापटक और भीतर ही भीतर चल रही खींचतान इस ओर इशारा कर रही है कि सबकुछ सामान्य नहीं है। क्या वाकई महागठबंधन में दरार पड़ रही है?Heats क्या तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद और अन्य सहयोगी दलों के बीच भरोसे की दीवार दरक रही है?

तेजस्वी बनाम सहयोगी दल – नेतृत्व पर सवाल

तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता माना गया है, लेकिन सहयोगी दलों में नेतृत्व को लेकर असंतोष उभर रहा है। कुछ छोटे दलों को लगता है कि राजद उन्हें बराबरी का स्थान नहीं दे रही है। नेतृत्व का यह संकट आने वाले चुनावों में गड़बड़ी की जड़ बन सकता है।

सीट शेयरिंग को लेकर असहमति

2020 के चुनाव के बाद बनी सीट बंटवारे की सहमति अब 2025 के लिए असंतोष का कारण बनती जा रही है। कांग्रेस, वामपंथी दल और अन्य सहयोगी चाहते हैं कि उन्हें ज़्यादा सीटें मिलें, जबकि राजद अपने प्रभाव के अनुपात में ज़्यादा सीटों की दावेदारी कर रही है।

मीडिया में बयानबाज़ी ने बढ़ाया तनाव

महागठबंधन के नेताओं की तरफ से हाल ही में मीडिया में कुछ तीखे बयान आए हैं, जिससे यह साफ़ है कि सबकुछ ठीक नहीं है। एक दूसरे के खिलाफ़ बयानबाज़ी न केवल मतभेद को बढ़ावा दे रही है, बल्कि विरोधियों को भी मौका दे रही है।

सीएम पद को लेकर उठते सवाल

तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा मानकर चल रहा है राजद, लेकिन सहयोगी दलों को इसपर कोई औपचारिक सहमति नहीं दिखती। कांग्रेस या वाम दलों के कुछ नेता सार्वजनिक मंचों पर इसपर सवाल उठा चुके हैं।

एनडीए की रणनीति से महागठबंधन में घबराहट

बीजेपी और जेडीयू का फिर से करीब आना और पीएम मोदी की सक्रियता से महागठबंधन में बेचैनी दिख रही है। सभी दल यह समझते हैं कि एनडीए संगठित हो रहा है और चुनावी गणित में बाज़ी पलट सकता है।

नए दलों की एंट्री से समीकरण बिगड़ सकते हैं

राज्य में कुछ नए क्षेत्रीय दल और सामाजिक संगठनों ने राजनीतिक पार्टी बनाने की बात कही है। अगर ये पार्टियाँ चुनाव में उतरती हैं तो महागठबंधन का वोट बैंक बंट सकता है, खासकर ओबीसी और मुस्लिम वोटों पर असर पड़ेगा।

जनता के मुद्दों पर एकरूपता की कमी

महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर महागठबंधन के भीतर साझा नीति का अभाव दिखाई दे रहा है। हर दल अपने-अपने तरीके से बात कर रहा है, जिससे जनता में एक स्पष्ट संदेश नहीं जा पा रहा है।

महागठबंधन में विश्वास की कमी

2020 से अब तक के घटनाक्रमों को देखें तो यह साफ़ होता है कि दलों के बीच विश्वास की डोर कमज़ोर हुई है। गठबंधन में शामिल कुछ दलों को लगता है कि राजद खुद को सर्वोपरि मानकर फैसले ले रही है।

सोशल मीडिया पर वर्चस्व की लड़ाई

राजद और कांग्रेस समर्थकों के बीच सोशल मीडिया पर अक्सर आरोप-प्रत्यारोप चलते हैं। इससे ज़मीनी कार्यकर्ताओं के बीच भी मतभेद और भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है।

क्या महागठबंधन 2025 तक एकजुट रहेगा?

सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या यह गठबंधन 2025 के विधानसभा चुनाव तक एकजुट रह पाएगा? अगर आंतरिक विवादों का समाधान नहीं किया गया, तो यह गठबंधन भी 2017 की तरह टूट सकता है, जिसका सीधा फायदा एनडीए को होगा।

निष्कर्ष:

बिहार की राजनीति में एक दिन में समीकरण बदल जाते हैं। महागठबंधन के नेताओं को यह समझना होगा कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को छोड़कर अगर वे मिलकर काम करें, तभी वे बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को टक्कर दे पाएंगे। नहीं तो 2025 का चुनाव फिर से इतिहास दोहरा सकता है, और तेजस्वी यादव के नेतृत्व की अग्निपरीक्षा और कठिन हो जाएगी।

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