पत्थरबाज़ी और फायरिंग: Bihar elections में तनाव क्यों बढ़ रहा है?

By: Rebecca

On: Friday, October 31, 2025 4:20 AM

बिहार चुनावों में तनाव क्यों बढ़ रहा है?
Follow Us

Bihar elections जो अपने राजनीतिक रंग और जनमत की जागरूकता के लिए जाना जाता है, एक बार फिर से हिंसा और तनाव के दौर में है। हर चरण के मतदान के साथ कहीं पत्थरबाजी, तो कहीं शूटिंग की घटनाएं सुरखियां बटोर रही हैं। प्रश्न यह है — आख़िर क्यों हर चुनाव में बिहार में हिंसा की घटनाएं होती हैं? यह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का परिणाम या असफलता का संकेत क्या है?

स्थानीय स्तर पर राजनीतिक प्रतिद्वंदिता

बिहार की राजनीति हमेशा से ही स्थानीय दलित नेताओं और जातीय समूहों पर आधारित रही है।
कई बार अशांति और उनके समर्थकों को अपने-अपने क्षेत्र में बनाए रखने के लिए हिंसा का सहारा लिया जाता है।
वोटिंग के दौरान, बूथ कब्ज़ाने की कोशिशें, और विरोधी टीमों के बीच मॅगनीज़, इस प्रतिद्वंदिता की मांद हैं।

रेलवे प्रबंधन एवं व्यवस्था सुरक्षा की कमी

हर चुनाव से पहले प्रशासन सुरक्षा का दावा तो किया जाता है, लेकिन कई बार ये आरोप ज़ायली शेयरों में लग जाते हैं।
बूथों पर पुलिस बल की कमी, ग्रामीण इलाक़े में उपकरणों का वितरण, और एफ़आईएमएम में देरी – ये सब तनाव को बढ़ावा देते हैं।
जहां सुरक्षा कम है, जहां हिंसा की आशंका सबसे ज्यादा है।

जातीय गुणांक का प्रभाव

बिहार की राजनीति में जातीय राजनीति (कास्ट पॉलिटिक्स) अब भी एक बड़ा कारक है।
कई समुदायों में वोटिंग जातीय आधार मौजूद है, जिससे एक समुदाय के समर्थन में उत्साह और दूसरे समुदाय में आक्रोश पैदा हो जाता है।
यह क्रोधित कई बार हिंसक रूप ले लेता है, विशेषकर तब जब किसी एक जाति के लिए आक्रामक समुदाय का समर्थन नहीं किया जाता है।

फ़ोकस न्यूज़ और अफवाहों की भूमिका

सोशल मीडिया पर अब डेमोक्रेट का एक नया “हथियार” बन गया है।
अफवाहें, चंचल खबरें, और अविश्वसनीय वीडियो लोगों की भावनाओं को भड़काने का काम कर रहे हैं।
किसी भी इलाके में गलत सूचना फैली हुई है, भीड़ हिंसक हो रही है, और प्रशासन को स्थिति में देरी हो रही है।

पुराने गुटबाज़ी वाले इलाके

बिहार में कई ऐसे इलाके हैं जहाँ सालों से राजनीतिक गुटबाज़ी चली आ रही है
जहाँ दो या तीन बड़े परिवार या गुट स्थानीय राजनीति में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
इन इलाकों में चुनावी माहौल हमेशा “हम बनाम वो” जैसा रहता है।
थोड़ी सी उकसाहट से भी पत्थरबाज़ी या गोलीबारी शुरू हो जाती है।

मतदान प्रतिशत को प्रभावित करने की कोशिश

कई बार हिंसा का मकसद सिर्फ डर फैलाना होता है, ताकि विपक्षी वोटर बूथ तक न पहुँच पाएँ।
यह एक रणनीतिक हथकंडा बन चुका है — डर का माहौल बनाओ और वोटिंग टर्नआउट घटाओ।
जहाँ वोटर डरे हुए रहते हैं, वहाँ लोकतंत्र की नींव हिलती है और असली जनमत दब जाता है।

युवाओं में राजनीतिक गुस्सा और बेरोज़गारी

बिहार के युवा लंबे समय से बेरोज़गारी और असंतोष से जूझ रहे हैं।
चुनावों के दौरान यह गुस्सा अक्सर गलत दिशा ले लेता है राजनीतिक पार्टियों के उकसावे या झूठे वादों से भटके युवा हिंसा में शामिल हो जाते हैं।
कई बार ये युवा किसी पार्टी के “ग्राउंड वर्कर” बनकर हिंसक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं।

स्थानीय अपराधियों की सक्रियता

चुनावी मौसम में कई स्थानीय अपराधी तत्व अचानक एक्टिव हो जाते हैं।
राजनीतिक पार्टियाँ इनका इस्तेमाल “मसल पावर” के रूप में करती हैं — बूथ कैप्चरिंग, विरोधी को डराना या वोटरों को धमकाना इनके काम का हिस्सा बन जाता है।
इससे न सिर्फ लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर पड़ता है, बल्कि इलाके का कानून-व्यवस्था तंत्र भी कमज़ोर होता है।

पुलिस और प्रशासन पर राजनीतिक दबाव के कारण निष्क्रियता

कई बार स्थानीय पुलिस पर राजनीतिक दबाव इतना ज़्यादा होता है कि वे निष्पक्ष कार्रवाई नहीं कर पाती।
अगर हिंसा किसी सत्ताधारी पार्टी के प्रभाव वाले इलाके में होती है, तो कार्रवाई धीमी रहती है, जबकि विपक्षी इलाके में तुरंत सख्ती दिखाई जाती है।
यह असंतुलन लोगों के बीच अविश्वास पैदा करता है, जो आगे चलकर तनाव में बदल जाता है।

लोकतंत्र की भावना का कमज़ोर होना

सबसे दुखद पहलू यह है कि ऐसी हिंसक घटनाएँ लोकतंत्र की मूल भावना को कमज़ोर करती हैं। जब मतदाता डर के साये में वोट डालता है या बूथ पर जाने से कतराता है, तो चुनाव का असली मकसद ही खत्म हो जाता है।
लोकतंत्र का मतलब है आज़ाद और निष्पक्ष चुनाव — और जब इसमें डर, हिंसा और हथियारों का दखल हो जाता है, तो यह लोकतंत्र नहीं, दबाव की राजनीति बन जाता है।

निष्कर्ष: बदलाव की ज़रूरत कहाँ है?

बिहार को एक ऐसे बदलाव की ज़रूरत है जो सिर्फ सरकारों से नहीं, बल्कि समाज से भी आए।
राजनीतिक पार्टियों को यह समझना होगा कि हिंसा से नहीं, बातचीत से ही सत्ता की साख बनती है।
एडमिनिस्ट्रेशन को ज़्यादा जवाबदेह बनाना होगा, लोकल पुलिस को आज़ादी से काम करने की छूट देनी होगी, और युवाओं को राजनीति में पॉजिटिव रोल निभाने के लिए मोटिवेट करना होगा तभी बिहार में चुनाव “टेंशन” नहीं, बल्कि “लोकतंत्र का उत्सव” कहलाएँगे।

For Feedback - feedback@example.com

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment