बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों में जोड़-तोड़ की गतिविधियां बढ़ने लगी हैं। BJP-JDU बीते रविवार को पटना स्थित सदाकत आश्रम में कांग्रेस पार्टी के एक मिलन समारोह के दौरान भाजपा और जदयू के कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। यह घटना न केवल कांग्रेस को सशक्त करती है, बल्कि राज्य की राजनीति में एक संभावित बदलाव का संकेत भी देती है। आइए, इस पूरे घटनाक्रम को 10 मुख्य बिंदुओं के माध्यम से समझते हैं:
कांग्रेस का संगठनात्मक विस्तार – चुनाव से पहले तैयारी तेज
बिहार कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए संगठनात्मक स्तर पर सक्रिय हो गई है। पार्टी का फोकस जमीनी कार्यकर्ताओं को जोड़ने, पुराने नेताओं को सक्रिय करने और दूसरी पार्टियों से असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में लाने पर है। यह मिलन समारोह उसी रणनीति का हिस्सा था, जिसका मकसद चुनावी ताकत को बढ़ाना है।
सदाकत आश्रम बना राजनीतिक मेल-जोल का केंद्र
पटना स्थित कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाला सदाकत आश्रम, रविवार को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र बन गया। यहां आयोजित मिलन समारोह में कई बड़े चेहरे कांग्रेस में शामिल हुए। यह आयोजन सिर्फ एक स्वागत समारोह नहीं था, बल्कि एक सशक्त राजनीतिक संदेश देने का मंच भी बन गया।
पूर्णिया मेयर के पति और भाजपा नेता जितेंद्र कुमार की एंट्री
इस समारोह की सबसे चर्चित शख्सियत रहे पूर्णिया नगर निगम की मेयर के पति जितेंद्र कुमार, जो अब तक भाजपा से जुड़े हुए थे। उन्होंने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का दामन थामा। यह कांग्रेस के लिए एक बड़ा प्रतीकात्मक लाभ है, क्योंकि इससे पार्टी को शहरी क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
जदयू नेता कुणाल अग्रवाल भी हुए शामिल
भाजपा के साथ-साथ जदयू के युवा नेता कुणाल अग्रवाल ने भी कांग्रेस में शामिल होकर नीतीश कुमार की पार्टी को झटका दिया है। कुणाल का यह फैसला बताता है कि जदयू में आंतरिक असंतोष बढ़ता जा रहा है, और युवा नेतृत्व को पार्टी की नीतियों में अब दम नजर नहीं आ रहा।
भाजपा नेता कुणाल किशोर सहनी ने भी छोड़ी पार्टी
एक और बड़ा नाम भाजपा नेता कुणाल किशोर सहनी का रहा, जिन्होंने कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित होकर पार्टी ज्वाइन की। उनके अनुसार भाजपा अब जनता के मुद्दों से भटक गई है और कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है जो बिहार की जनता को दिशा दे सकती है।
कांग्रेस नेतृत्व का गर्मजोशी से स्वागत
इन सभी नेताओं का कांग्रेस में गर्मजोशी से स्वागत किया गया। पार्टी नेतृत्व ने इनका अभिनंदन करते हुए कहा कि कांग्रेस सबको साथ लेकर चलने वाली पार्टी है और ऐसे अनुभवी व सक्रिय नेताओं के जुड़ने से पार्टी की मजबूती निश्चित है।
क्या है कांग्रेस की रणनीति?
कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट है – भाजपा और जदयू से नाराज नेताओं को जोड़कर अपने संगठन को मजबूत करना। पार्टी जानती है कि अकेले दम पर वह शायद सत्ता में न लौट सके, लेकिन गठबंधन की राजनीति में बेहतर सौदेबाज़ी की स्थिति तभी बनेगी जब पार्टी का अपना जनाधार मजबूत हो।
विपक्षी दलों को झटका
भाजपा और जदयू के जिन नेताओं ने कांग्रेस ज्वाइन की, वे न केवल पार्टी के स्थानीय चेहरे थे बल्कि कई वर्षों से क्षेत्र में सक्रिय भी थे। इनका पार्टी छोड़ना विपक्षी दलों के लिए बड़ा मनोवैज्ञानिक झटका है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां ये नेता प्रभावशाली माने जाते थे।
जनता का रुझान भी बदल रहा?
हाल के महीनों में जनता का रुझान भी बदला-बदला सा दिख रहा है। बेरोजगारी, महंगाई और जातीय जनगणना जैसे मुद्दों पर सरकार की चुप्पी ने विपक्ष को आवाज़ उठाने का मौका दिया है। कांग्रेस अब इस माहौल का फायदा उठाकर खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रही है।
क्या बिहार की राजनीति में नया मोड़?
नेताओं के इस पार्टी परिवर्तन से यह सवाल उठता है – क्या बिहार की राजनीति में कोई नया मोड़ आ रहा है? क्या जनता पुराने समीकरणों से थक चुकी है और अब बदलाव चाहती है? कांग्रेस इन सवालों को ही अपने प्रचार का हथियार बना रही है।
निष्कर्ष
बिहार में चुनावी सरगर्मी तेज हो चुकी है और यह मिलन समारोह उसी उथल-पुथल का एक हिस्सा है। कांग्रेस का यह दांव कितना कारगर होगा, यह तो चुनाव नतीजे बताएंगे, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस ने इस बार चुनावी रणभूमि में खुद को कमजोर नहीं दिखाने का निर्णय ले लिया है। भाजपा और जदयू को अब केवल अपने कार्यकर्ताओं को ही नहीं, बल्कि जनाधार को भी बचाने की चुनौती है।