राजनीतिक रणनीतिकार से जन नेता बने Prashant Kishor को उनके बहुचर्चित बिहार परिवर्तन अभियान – जन सुराज यात्रा – में हाल ही में एक बड़ा झटका लगा है। प्रशांत किशोर पिछले कई महीनों से गांव-गांव जाकर जनता से संवाद कर रहे थे और बिहार में ‘वास्तविक बदलाव’ लाने की बात कर रहे थे। लेकिन ताजा घटनाक्रम ने उनकी इस यात्रा की गति पर ब्रेक लगा दिया है।
जन सुराज यात्रा को रोकने का आदेश
सबसे बड़ा झटका यह रहा कि प्रशासन ने अचानक जन सुराज यात्रा को रोकने का आदेश दे दिया। आयोजनों और जनसभाओं को अनुमति देने से इनकार कर दिया गया है। यह प्रशांत किशोर के अभियान के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि इसी यात्रा के ज़रिए वे अपनी राजनीतिक पकड़ मज़बूत कर रहे थे।
पुलिस प्रशासन ने नहीं दी सभा की अनुमति
प्रशांत किशोर की टीम ने बताया कि उन्होंने एक बड़ी सभा के लिए प्रशासन से अनुमति मांगी थी, लेकिन आखिरी समय पर पुलिस ने अनुमति देने से मना कर दिया। इसके पीछे सुरक्षा कारणों और कानून-व्यवस्था की दलील दी गई। हालांकि, प्रशांत किशोर का कहना है कि यह एक राजनीतिक दबाव का नतीजा है।
प्रशांत किशोर ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
इस निर्णय के बाद प्रशांत किशोर ने राज्य सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि “बिहार की सरकार बदलाव से डरती है। वो जनता की आवाज़ को दबाना चाहती है।” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को उनकी लोकप्रियता और जनता के साथ सीधे संवाद करने की शैली से डर लग रहा है।
जन सुराज अभियान की लोकप्रियता बढ़ रही थी
पिछले कुछ महीनों में जन सुराज अभियान को बिहार के ग्रामीण इलाकों में काफी समर्थन मिला था। प्रशांत किशोर पैदल यात्रा कर रहे थे, लोगों से संवाद कर रहे थे, और उनके मुद्दों को सामने ला रहे थे। जनता की समस्याओं से सीधा जुड़ाव ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बनती जा रही थी। ऐसे में यात्रा को रोके जाने से यह स्पष्ट होता है कि उनकी बढ़ती लोकप्रियता सत्ता पक्ष के लिए चिंता का विषय बन गई थी।
गांव-गांव जाकर जनता से सीधा संवाद
प्रशांत किशोर का यह अभियान चुनावी भाषणों से बिल्कुल अलग था। वे गांवों में रात गुजारते, स्थानीय लोगों के घरों में बैठकर बातचीत करते और विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते थे। इस तरह की सीधी जन-संवाद नीति से जनता उन्हें एक ‘अपना नेता’ मानने लगी थी।
युवाओं और छात्रों में बढ़ रहा था समर्थन
जन सुराज यात्रा ने युवाओं और छात्रों में खासा प्रभाव डाला था। बेरोजगारी, शिक्षा और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर उनकी बातचीत ने युवाओं को जोड़ा। कई जगहों पर छात्र स्वयंसेवक बनकर उनकी यात्रा में शामिल हुए। ऐसे में यात्रा को रोके जाने से यह वर्ग निराश हुआ है।
क्या यह यात्रा चुनावी रणनीति का हिस्सा है?
हालांकि प्रशांत किशोर कहते हैं कि उनका उद्देश्य केवल बिहार का सामाजिक और राजनीतिक सुधार है, लेकिन राजनीति के जानकार इसे आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति के तौर पर देख रहे हैं। यात्रा को रोकना कहीं न कहीं भविष्य की संभावनाओं को सीमित करने का एक प्रयास हो सकता है।
विरोधी दलों की प्रतिक्रिया
बिहार की सत्ताधारी पार्टी (जेडीयू और आरजेडी) ने अभी तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया पर जन सुराज यात्रा का मज़ाक उड़ाया गया। वहीं बीजेपी जैसे विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए प्रशांत किशोर को समर्थन देने की बातें कही हैं।
प्रशांत किशोर की अगली रणनीति क्या होगी?
प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया है कि वह इस झटके से पीछे हटने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो वह कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाएंगे। साथ ही वह जनता से सीधा संवाद करने के वैकल्पिक रास्तों पर भी विचार कर रहे हैं – जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म, पंचायत स्तर की छोटी बैठकें आदि।
क्या यह झटका अभियान को धीमा कर देगा?
यह सवाल अभी सबसे अहम है। प्रशासनिक अड़चनें, अनुमति न मिलना, और विरोध – ये सभी प्रशांत किशोर की जन यात्रा की गति को धीमा ज़रूर कर सकते हैं, लेकिन अब तक जिस जोश और जन समर्थन से यह अभियान आगे बढ़ रहा था, वह रुकने वाला नहीं लगता। उन्होंने खुद कहा है – “यह लड़ाई लंबी है, लेकिन बिहार की आत्मा में बदलाव की आग लग चुकी है।”
निष्कर्ष:
प्रशांत किशोर का बिहार बदलाव अभियान एक सामाजिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, जिसने धीरे-धीरे राजनीतिक रंग भी ले लिया। आज जब इस यात्रा को रोका गया है, तो यह साफ़ है कि वे सत्ता पक्ष की आंखों में खटकने लगे हैं। हालांकि यह एक बड़ा झटका है, लेकिन यह भी दिखाता है कि उनका प्रभाव बढ़ रहा है। अब देखना होगा कि प्रशांत किशोर इस मुश्किल से कैसे निपटते हैं और क्या वाकई यह जन आंदोलन बिहार की राजनीति में नया अध्याय लिख सकेगा।