बिहार… एक ऐसा राज्य जिसकी तस्वीर वर्षों से गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन से जुड़ी रही है। लेकिन आज जब देश डिजिटल क्रांति और विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है, बिहार के नौजवानों की आंखों में भी अब उम्मीद की चमक है। और इसी उम्मीद को हवा दी है प्रशांत किशोर ने, जो आजकल अपने ‘जन सुराज’ पदयात्रा मिशन के जरिए गाँव-गाँव जाकर जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं।
हाल ही में उनका एक वीडियो वायरल हुआ, Bihar जिसमें वे गरीबी से बाहर निकलने का एक सीधा-साधा लेकिन दमदार फॉर्मूला साझा करते हैं। उनका अंदाज साफ था “सरकारें रोजगार नहीं देंगी, तो लोगों को खुद सोच बदलनी होगी।”
गरीबी का सबसे बड़ा कारण: सोच की बेड़ियां
प्रशांत किशोर का मानना है कि बिहार की गरीबी सिर्फ संसाधनों की कमी से नहीं, बल्कि सोच की सीमाओं से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि जब तक लोग “बस किसी सरकारी नौकरी या योजना” पर निर्भर रहेंगे, तब तक गरीबी से मुक्ति संभव नहीं। उनका फॉर्मूला है — सोच को नौकरी मांगने से हटाकर अवसर बनाने पर केंद्रित करना। यही पहला कदम है।
सरकार से उम्मीद छोड़ो, खुद आगे बढ़ो
PK ने बहुत साफ लहजे में कहा — “अगर आपको लगता है कि सरकार आकर आपके लिए रोजगार लाएगी, तो आप भ्रम में हैं।”
उन्होंने जनता को यह समझाया कि राजनीतिक दलों के चुनावी वादों पर निर्भर रहकर जीवन नहीं बदलता। उन्होंने युवाओं को अपने गांव, कौशल और संसाधनों का उपयोग करके खुद के लिए काम खड़ा करने की सलाह दी।
किसान सिर्फ उपजाएं नहीं, बेचें भी समझदारी से
प्रशांत किशोर ने किसानों को खास सलाह दी कि वे केवल खेती तक सीमित न रहें, बल्कि खुद मार्केटिंग, प्रोसेसिंग और बिक्री के तरीके सीखें।
उन्होंने उदाहरण दिया कि चावल उगाने वाला किसान अगर खुद उसका पैकेज्ड ब्रांड बनाकर बेचे, तो मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है। यही है ग्रामीण अर्थव्यवस्था को खुद के बल पर खड़ा करने की सोच।
छोटे-छोटे बिज़नेस से बड़े बदलाव
PK ने बिहार के युवाओं को बताया कि बड़ा पैसा लगाने की जरूरत नहीं, शुरुआत छोटे स्तर से की जा सकती है।
कोई दूध की डेयरी खोले, कोई हस्तशिल्प बनाए, कोई मोबाइल रिपेयरिंग सीखे — यह सब आज के दौर में कम लागत वाले लेकिन लाभदायक बिजनेस हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो भी स्किल आपको आता है, उसी को बिजनेस में बदलिए।
शिक्षा का मतलब सिर्फ डिग्री नहीं, स्किल है असली ताकत
प्रशांत किशोर का यह बिंदु बेहद सटीक था — डिग्रियों की भीड़ से रोजगार नहीं मिलता उन्होंने कहा कि अगर आप 12वीं पास हैं लेकिन आपको कोई तकनीकी हुनर नहीं आता, तो डिग्री काम नहीं आएगी। उन्होंने युवाओं को डिजिटल मार्केटिंग, कंप्यूटर, एग्रीटेक, सिलाई, मोबाइल मरम्मत, ड्राइविंग जैसे स्किल्स सीखने की सलाह दी — ताकि गरीबी से निकलने का रास्ता खुद बने।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना सबसे जरूरी
PK ने महिलाओं को सीधे संबोधित करते हुए कहा कि अगर बिहार की महिलाएं सिलाई, बुनाई, अचार-पापड़, गाय पालन, मुर्गी पालन जैसे कार्य शुरू करें, तो वे न केवल अपने परिवार को संभालेंगी, बल्कि समाज का चेहरा बदल देंगी। उन्होंने कहा — “अगर हर गांव की 50 महिलाएं मिलकर कोई एक छोटा उद्योग शुरू कर लें, तो गरीबी भाग जाएगी।”
बाहरी नौकरी पर निर्भरता खत्म होनी चाहिए
बिहार के लाखों लोग आज भी दिल्ली, पंजाब, गुजरात और मुंबई में मजदूरी करने जाते हैं। PK ने इसे “मजबूरी का पलायन” कहा और इसे खत्म करने का समाधान बताया स्थानीय रोज़गार का निर्माण। उन्होंने उदाहरण दिए कि कैसे एक गाँव में दूध संग्रह केंद्र, मुर्गी पालन यूनिट, या बांस शिल्प उद्योग बन सकता है।
गांव को छोड़ना नहीं, गांव को ही सशक्त बनाना है
प्रशांत किशोर ने साफ कहा “अगर आप सोचते हैं कि शहर जाकर ही जिंदगी बदलेगी, तो आप फिर से ग़लत रास्ते पर हैं।” उन्होंने बताया कि आज इंटरनेट, सड़क और मोबाइल की वजह से गांवों में भी वही अवसर हैं बस दृष्टिकोण बदलने की ज़रूरत है। उनकी योजना है हर गांव में 5-10 युवा स्थानीय संसाधनों से स्वावलंबी बनें, और दूसरों को भी प्रेरित करें।
राजनीति से पहले समाज को तैयार करना जरूरी
PK का फॉर्मूला सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक सुधार से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि राजनीति तभी बदलेगी जब समाज की सोच बदलेगी। इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ रहे, बल्कि पहले जनता को शिक्षित और जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने लोगों से कहा — “नेताओं को गाली देने से बेहतर है कि खुद सोच बदलें, खुद मेहनत करें और बच्चों को भी जिम्मेदार बनाएं।”
जन सुराज का मकसद सिर्फ सत्ता नहीं, सिस्टम बदलना है
प्रशांत किशोर ने ‘जन सुराज’ को सिर्फ एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि जन आंदोलन कहा। उनकी मंशा है कि हर आम आदमी को यह समझाया जाए कि गरीबी स्थायी नहीं है — इच्छाशक्ति और सही दिशा से हर कोई उबर सकता है। इसलिए वे बिहार के सैकड़ों गांवों में पैदल घूमकर हर व्यक्ति से मिल रहे हैं — ताकि नींव मजबूत हो, तब जाकर इमारत टिकाऊ बने।
निष्कर्ष:
प्रशांत किशोर का यह फॉर्मूला कोई जादू की छड़ी नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़ी सच्चाई है। वे सिर्फ कह नहीं रहे — चलकर, समझकर, और महसूस कर रहे हैं कि कैसे गरीबी को हराया जा सकता है उनकी बातों का मानवीय असर इसलिए हो रहा है, क्योंकि वो भाषण नहीं दे रहे — वो साझेदारी का प्रस्ताव दे रहे हैं अगर बिहार का युवा, किसान, महिला और आम नागरिक उनकी बातों को गंभीरता से ले ले — तो यकीन मानिए, अगले 10 साल में बिहार देश का सबसे बड़ा बदलाव देखने वाला राज्य बन सकता है।