बिहार की सियासत में प्रखर प्रतिक्रिया: प्रशांत किशोर ने CIC के मतदाता सूची हटाने पर किया कड़ा हमला

By: Rebecca

On: Monday, August 4, 2025 8:31 AM

प्रशांत किशोर ने CIC के मतदाता सूची हटाने पर किया कड़ा हमला
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बिहार की राजनीति हमेशा से ही गतिशील और बहसों से भरी रही है। लेकिन हाल के दिनों में एक नई राजनीतिक बहस ने तूल पकड़ लिया है वोटर लिस्ट से नाम हटाए जाने का मामला। इस विवाद के केंद्र में हैं जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर, CIC जिन्होंने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) पर गंभीर आरोप लगाते हुए यह दावा किया कि बिहार में हजारों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं।

प्रशांत किशोर की इस प्रतिक्रिया ने चुनावी माहौल को गरमा दिया है और सवाल उठाए हैं कि क्या सचमुच बिहार में लोकतंत्र के सबसे बुनियादी अधिकार वोट देने का अधिकार को दबाया जा रहा है?

विवाद की शुरुआत: मतदाता सूची से नाम गायब होने की शिकायतें

बिहार के कई जिलों से लगातार यह शिकायतें आ रही थीं कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम बिना किसी पूर्व सूचना के वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं। इनमें ग्रामीण इलाकों के गरीब, बुज़ुर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग प्रमुख रूप से शामिल हैं। प्रशांत किशोर ने इस मुद्दे को सामने लाते हुए कहा कि यह सिर्फ तकनीकी गलती नहीं, बल्कि सुनियोजित राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

प्रशांत किशोर का तीखा हमला: “जो बचे हैं, वही हटाएंगे सरकार”

प्रशांत किशोर ने अपने बयान में कहा: बिना शक, चुनाव आयोग मतदाताओं के नाम हटा रहा है, लेकिन जो बचे हैं वही इस सरकार को हटाने के लिए काफी हैं। यह कथन न केवल चुनाव आयोग पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि बिहार की वर्तमान सरकार के खिलाफ भी स्पष्ट जन असंतोष को उजागर करता है।

राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा?

इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएँ देखी गईं। भाजपा नेताओं ने किशोर पर पक्षपातपूर्ण राजनीति का आरोप लगाया, जबकि विपक्ष ने उनके समर्थन में आवाज़ उठाई। यह विवाद बिहार की राजनीति में नए ध्रुवीकरण को जन्म दे सकता है।

तेजस्वी यादव पर भी निशाना

किशोर ने तेजस्वी यादव के उस बयान पर भी सवाल उठाया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि उनका नाम वोटर लिस्ट से गायब कर दिया गया है। किशोर ने कहा कि तेजस्वी को गंभीरता से बात करनी चाहिए और यदि सच में उनका नाम हटाया गया है तो वे एफआईआर या कानूनी प्रक्रिया अपनाएं, केवल बयानबाज़ी न करें।

जन सुराज की बढ़ती राजनीतिक पकड़

इस विवाद ने अप्रत्यक्ष रूप से प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को राष्ट्रीय मीडिया और आम जनता के बीच चर्चित बना दिया है।
जहां अन्य दल आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हैं, वहीं पीके मुद्दों को लेकर जनता से संवाद बनाने की रणनीति में लगे हैं।

ECI की भूमिका पर सवाल

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) देश के लोकतंत्र की रीढ़ माना जाता है। लेकिन यदि सच में बिना सूचना के नाम हटाए जा रहे हैं, तो यह गंभीर चूक है। प्रशांत किशोर ने यह मुद्दा उठाकर ECI की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सीधा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

आम जनता की बेचैनी

मतदाता सूची से नाम हटने की खबरों से ग्रामीण इलाकों के लोग खासे चिंतित हैं।
कई लोगों को डर है कि कहीं उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में मतदान का मौका ही न मिले।
इस डर को देखकर स्पष्ट है कि इस विवाद का जनसंपर्क पर व्यापक असर पड़ा है।

मीडिया कवरेज और राजनीतिक बहस

मुख्यधारा मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक, प्रशांत किशोर की प्रतिक्रिया ट्रेंडिंग खबर बनी हुई है।
टीवी डिबेट्स, ट्विटर थ्रेड्स और फेसबुक पोस्ट्स में लोग इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं — कोई इसे ईमानदारी मानता है, तो कोई इसे राजनीतिक स्टंट।

विधानसभा चुनाव 2025 की पृष्ठभूमि

बिहार में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में वोटर लिस्ट विवाद सीधे चुनावी माहौल को प्रभावित कर सकता है।
जो दल जनाधार खो रहे हैं, वे मतदाता सूची से छेड़छाड़ के आरोपों को चुनावी हथियार बना सकते हैं।

लोकतंत्र बनाम प्रशासनिक चूक: जनता किसे माने दोषी?

प्रशांत किशोर की बातों से एक बड़ा सवाल खड़ा होता है क्या यह वास्तव में एक राजनीतिक साजिश है या फिर प्रशासनिक लापरवाही? इसका जवाब अब आम जनता को ढूंढ़ना है। लेकिन यह तय है कि इस विवाद ने मतदाताओं को सतर्क कर दिया है और वोटर लिस्ट जांचने की प्रवृत्ति बढ़ी है।

निष्कर्ष:

प्रशांत किशोर का यह आक्रामक रुख एक ओर उन्हें जनता के मुद्दों के प्रवक्ता के रूप में उभारता है, वहीं दूसरी ओर यह राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग को भी सशक्त बनाता है। बिहार की राजनीति में यह घटनाक्रम केवल चुनाव आयोग या किसी एक पार्टी की जवाबदेही नहीं, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे की परीक्षा है।

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