प्रशांत किशोर के Operation Sindoor के दावों का सच

By: Rebecca

On: Thursday, August 7, 2025 4:41 AM

Operation Sindoor
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भारत की राजनीति में रणनीतिकारों की भूमिका अब पहले से कहीं ज्यादा प्रभावशाली हो चुकी है। इनमें एक नाम जो हमेशा चर्चा में रहता है, वह है – प्रशांत किशोर (PK)। हाल ही में उन्होंने Operation Sindoor नाम से एक कथित राजनीतिक घटनाक्रम पर टिप्पणी की, जिसने सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर खूब सुर्खियाँ बटोरीं। लेकिन सवाल यह है – क्या उनके दावे पूरी तरह सही हैं? क्या यह किसी रणनीतिक मकसद के तहत फैलाई गई आधी-अधूरी सच्चाई है?

ऑपरेशन सिंदूर: आखिर यह है क्या?

‘ऑपरेशन सिंदूर’ दरअसल एक कथित राजनीतिक पहल का नाम है, जिसके तहत बिहार में सत्तारूढ़ दल या विपक्ष द्वारा कुछ महिलाओं को “प्रतीकात्मक समर्थन” के रूप में सामने लाकर राजनीतिक बढ़त लेने की कोशिश की जा रही है। यह नाम इसीलिए दिया गया क्योंकि इसमें महिलाओं की पारंपरिक पहचान – सिंदूर – को प्रतीकात्मक रूप से इस्तेमाल किया गया प्रशांत किशोर ने इस अभियान को लेकर गंभीर आरोप लगाए कि इसमें महिलाओं की भावना का ‘राजनीतिक दोहन’ किया जा रहा है।

प्रशांत किशोर का दावा: “यह सिर्फ इमोशनल ड्रामा है”

किशोर का कहना है कि ऑपरेशन सिंदूर एक सोची-समझी स्क्रिप्ट है, जिसका मकसद महिलाओं की सहानुभूति बटोरना है। वे कहते हैं कि इसमें ज़मीनी हकीकत की कोई भूमिका नहीं है। महिलाओं को बस एक भावनात्मक प्रतीक बनाकर सामने लाया गया, जिससे जनता को प्रभावित किया जा सके।

सवाल उठता है: क्या उन्होंने साक्ष्य दिए?

यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रशांत किशोर ने अपने दावों के समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किए। उन्होंने न तो कोई दस्तावेज़ी प्रमाण दिया, न किसी घटना का स्पष्ट ब्यौरा। सिर्फ यह कहना कि “यह प्लान है”, एक राजनीतिक रणनीतिकार की राय हो सकती है, लेकिन जब बात जनता के बीच विवाद खड़ा करने की हो, तो साक्ष्यों का होना ज़रूरी है।

मीडिया में कैसे हुआ इसे पेश?

कई मीडिया चैनलों ने इसे सनसनीखेज़ रूप में पेश किया। उन्होंने किशोर के आरोपों को हेडलाइन बना दिया – “प्रशांत किशोर ने खोल दी सियासी चाल की पोल!” लेकिन अधिकांश रिपोर्टिंग में तथ्यात्मक जांच नहीं की गई। यह दर्शाता है कि मीडिया भी कभी-कभी राजनीतिक बयानबाज़ी को ही अंतिम सच मान लेता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया: जनता बंटी हुई नजर आई

जब यह बयान वायरल हुआ, तो सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। एक वर्ग ने प्रशांत किशोर की बातों को सही ठहराया, जबकि दूसरा वर्ग इसे सिर्फ एक पब्लिसिटी स्टंट मानता रहा। कई महिलाओं ने भी कहा कि अगर उन्हें मंच दिया जा रहा है, तो इसमें गलत क्या है?

क्या यह सिर्फ एक रणनीति है?

किशोर लंबे समय से बिहार में जनसुराज अभियान चला रहे हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या यह बयान उनका राजनीतिक हथकंडा था, जिससे वे दूसरे दलों की छवि को नुकसान पहुंचा सकें? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किशोर अपने बयान चुनिंदा समय पर देते हैं, जब उन्हें अधिकतम मीडिया अटेंशन मिल सके।

महिलाओं का दृष्टिकोण: उन्हें वस्तु नहीं समझा जा सकता

यह मामला संवेदनशील तब हो जाता है जब महिलाओं की भूमिका को सिर्फ एक ‘टूल’ की तरह देखा जाता है। अगर सच में कोई महिला प्रतिनिधित्व कर रही है तो उसे ‘स्क्रिप्टेड’ कह देना उनके आत्मसम्मान का अपमान हो सकता है। प्रशांत किशोर के इस बयान से महिलाओं में नाराज़गी देखी गई, क्योंकि इससे यह संकेत गया कि वे खुद फैसला नहीं ले सकतीं।

सियासी माहौल पर असर

बिहार की राजनीति पहले से ही जातीय समीकरण, विकास योजनाओं और भ्रष्टाचार के आरोपों में उलझी हुई है। ऐसे में ऑपरेशन सिंदूर पर यह विवाद एक नया मोड़ जोड़ता है। प्रशांत किशोर ने जानबूझकर इसे उठाया या नहीं, लेकिन इससे बिहार की राजनीति में गर्मी जरूर आ गई है।

सच्चाई की तलाश: क्या निष्पक्ष जांच होनी चाहिए?

जब इतना बड़ा आरोप सार्वजनिक रूप से लगाया गया है, तो एक स्वतंत्र जांच एजेंसी या निष्पक्ष पैनल को इस अभियान की जांच करनी चाहिए। अगर यह वाकई एक इमोशनल ड्रामा है, तो यह जनता के साथ धोखा है। और अगर यह सच्चा अभियान है, तो प्रशांत किशोर को माफी मांगनी चाहिए।

निष्कर्ष:

प्रशांत किशोर का यह दावा सुनने में बड़ा लगता है, लेकिन जब तक ठोस सबूत सामने नहीं आते, इसे केवल एक राजनीतिक चाल ही माना जाएगा। आज के दौर में जब जनता पहले से ही राजनीतिक नेताओं से थकी हुई है, ऐसे बयानों को लेकर सावधानी बरतना बेहद जरूरी है।

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