बिहार की राजनीति इन दिनों एक बार फिर गर्म हो गई है। लोकसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच महागठबंधन (RJD, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन) के भीतर सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। पहले सीट बंटवारे को लेकर खींचतान हुई, अब कैंपेन और मेनिफेस्टो को लेकर भी दरार साफ नजर आने लगी है।
सीट बंटवारे से शुरू हुई कलह की कहानी
महागठबंधन के भीतर सबसे पहले सीटों की संख्या को लेकर मतभेद उभरे। कांग्रेस चाहती थी कि उसे पिछले चुनाव से ज्यादा सीटें दी जाएं, जबकि RJD अपने मजबूत जनाधार के दम पर बहुमत सीटें खुद रखना चाहती थी। इस खींचतान ने गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए
कैंपेन की रणनीति पर टकराव
अब जब सीटों पर किसी तरह समझौता हुआ, तो चुनाव प्रचार की रणनीति पर मतभेद बढ़ गए हैं। RJD चाहती है कि प्रचार की कमान तेजस्वी यादव के नेतृत्व में रहे, वहीं कांग्रेस अपने राष्ट्रीय नेताओं के कैंपेन को प्राथमिकता दे रही है। इससे कैंपेन प्लान को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है।
मेनिफेस्टो तैयार करने में मतभेद
गठबंधन के दोनों बड़े दलों के बीच मेनिफेस्टो (घोषणापत्र) को लेकर भी मतभेद सामने आए हैं। RJD का फोकस युवाओं और रोजगार पर है, जबकि कांग्रेस सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को प्रमुखता देना चाहती है। दोनों पार्टियों की प्राथमिकताओं में फर्क साफ दिख रहा है।
तेजस्वी बनाम कांग्रेस नेतृत्व की स्थिति
तेजस्वी यादव इस गठबंधन के चेहरा बने हुए हैं, लेकिन कांग्रेस चाहती है कि राज्य के स्तर पर नेतृत्व साझा रूप से दिखे। इससे नेतृत्व को लेकर असहमति और बढ़ गई है। कांग्रेस के कई स्थानीय नेता मानते हैं कि सिर्फ RJD-केंद्रित छवि गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती है।
ग्राउंड लेवल पर कार्यकर्ताओं में असंतोष
गठबंधन के दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच भी तालमेल कमजोर पड़ा है। कई जिलों में कांग्रेस और RJD के कार्यकर्ताओं में नाराजगी और गुटबाजी की खबरें हैं। चुनावी तैयारी के इस मोड़ पर यह असंतोष पार्टी संगठन को कमजोर कर सकता है।
बीजेपी और एनडीए के लिए बढ़ा मौका
महागठबंधन में जारी खींचतान का सीधा फायदा बीजेपी और एनडीए को मिल सकता है। एनडीए पहले से ही एकजुटता दिखा रहा है और नीतीश कुमार अब बीजेपी के साथ तालमेल में दिखाई दे रहे हैं। विपक्ष में बिखराव से सत्ताधारी गठबंधन को रणनीतिक बढ़त मिल सकती है।
जनता के बीच भ्रम की स्थिति
महागठबंधन की आंतरिक लड़ाई का असर जनता पर भी पड़ रहा है। मतदाता यह तय नहीं कर पा रहे कि असली विपक्षी चेहरा कौन है। कहीं कांग्रेस के नेता अलग एजेंडा चला रहे हैं तो कहीं RJD अपनी रैलियों में गठबंधन का नाम तक नहीं ले रही। यह जनता में भ्रम पैदा कर रहा है।
सोशल मीडिया पर छिड़ी जुबानी जंग
कैंपेन को लेकर सोशल मीडिया पर भी दोनों दलों के समर्थकों के बीच शब्दों की जंग छिड़ी हुई है। RJD समर्थक तेजस्वी यादव के नेतृत्व की तारीफ करते हैं, जबकि कांग्रेस समर्थक ‘साझा नेतृत्व’ की मांग उठा रहे हैं। ट्विटर और फेसबुक पर यह बहस लगातार ट्रेंड कर रही है।
गठबंधन के छोटे दलों की चिंता बढ़ी
RJD और कांग्रेस के बीच मतभेद के चलते वाम दलों जैसे CPI(ML) और CPI(M) के नेताओं में भी बेचैनी बढ़ी है। उनका कहना है कि अगर गठबंधन के दो बड़े घटक ही आपसी सहमति से नहीं चल पा रहे, तो जमीनी स्तर पर संयुक्त रणनीति कैसे बनेगी?
चुनाव से पहले सुलह की उम्मीद, लेकिन मुश्किल रास्ता
हालांकि दोनों दलों के वरिष्ठ नेता स्थिति संभालने की कोशिश में हैं। सूत्रों के मुताबिक, पटना में एक संयुक्त बैठक जल्द बुलाने की योजना है, ताकि कैंपेन और मेनिफेस्टो दोनों पर आम राय बनाई जा सके। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह दरार भर पाती है या नहीं।
निष्कर्ष – बिहार की राजनीति में गठबंधन की मजबूती या कमजोरी?
बिहार में महागठबंधन का लक्ष्य बीजेपी और एनडीए को चुनौती देना है, लेकिन आंतरिक मतभेद इसे कमजोर कर सकते हैं। चुनाव नजदीक हैं, जनता मुद्दों पर जवाब चाहती है, न कि दलों के बीच लड़ाई। अगर RJD और कांग्रेस इस समय अपनी रणनीति में सामंजस्य नहीं बैठा पाए, तो इसका असर सीधे तौर पर चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है।





