बिहार की राजनीति में चुनावी मौसम आते ही सरगर्मी चरम पर होती है। 2025 का विधानसभा चुनाव भी कुछ अलग नहीं है। इस बार मुकाबला सिर्फ NDA और RJD के बीच नहीं, बल्कि इन दोनों गठबंधनों के भीतर भी खींचतान देखने को मिल रही है। एक तरफ NDA में चिराग पासवान की भूमिका को लेकर असमंजस है, तो दूसरी तरफ RJD में लालू यादव और तेजस्वी यादव के बीच रणनीतिक मतभेद की चर्चा ज़ोरों पर है।
NDA में खलल: चिराग पासवान बने नई चुनौती
लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के नेता चिराग पासवान एक बार फिर NDA के लिए सिरदर्द बनते दिख रहे हैं। 2020 में जब उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था, तब JDU को भारी नुकसान हुआ था। अब 2025 में वे फिर से वही रुख अपनाने के मूड में हैं।
भले ही चिराग खुले तौर पर NDA का हिस्सा कहे जाते हैं, लेकिन उनके बयान अकसर बीजेपी और JDU की रणनीतियों पर सवाल उठाते हैं। यह अनिश्चितता NDA की सीट बंटवारे की बातचीत को और मुश्किल बना रही है।
सीट बंटवारे पर तकरार: कौन लड़ेगा कहां से?
इस बार का सबसे बड़ा सवाल यही है कि सीट बंटवारा आखिर कैसे होगा।
JDU चाहती है कि 2020 की तरह उसे बड़ी हिस्सेदारी मिले, वहीं बीजेपी इस बार बराबरी की साझेदारी पर ज़ोर दे रही है।
इधर चिराग पासवान अपनी पार्टी के लिए 30 से अधिक सीटों की मांग कर चुके हैं, जबकि JDU उन्हें “छोटा सहयोगी” मानकर केवल कुछ सीटें देने को तैयार है।
यह खींचतान अगर सुलझी नहीं, तो NDA के भीतर दरार गहराने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
नीतीश कुमार की भूमिका: ‘किंग’ या ‘किंगमेकर’?
नीतीश कुमार, जो बिहार की राजनीति में लगभग दो दशक से सत्ता के केंद्र में हैं, इस बार एक कठिन मोड़ पर हैं।
उनकी लोकप्रियता पहले जैसी नहीं रही, और गठबंधन में उनका कद भी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
बीजेपी अब नीतीश को ‘चेहरा’ मानने से बच रही है और खुद को मुख्य शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहती है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नीतीश फिर से “किंगमेकर” बनेंगे या इस बार की लड़ाई में अपनी कुर्सी बचा पाएंगे?
RJD में अंदरूनी उथल-पुथल: लालू बनाम तेजस्वी?
RJD के अंदर भी हालात कुछ बेहतर नहीं हैं। पार्टी में “जनता के बीच तेजस्वी” की लोकप्रियता तो है, लेकिन संगठन के पुराने चेहरे अब भी लालू यादव के इशारों पर चलते हैं।
कहा जा रहा है कि चुनावी रणनीति को लेकर पिता-पुत्र के बीच राय में मतभेद हैं।
जहां तेजस्वी आधुनिक और आक्रामक प्रचार रणनीति अपनाना चाहते हैं, वहीं लालू परंपरागत जातीय समीकरणों पर भरोसा रखते हैं।
यह दो विचारधाराएं पार्टी की दिशा को प्रभावित कर सकती हैं।
महागठबंधन में असमंजस: कांग्रेस और वाम दलों की स्थिति
महागठबंधन की एक और कमजोरी है — उसके घटक दलों की स्थिति।
कांग्रेस पहले ही कमजोर हो चुकी है और सीटों की संख्या को लेकर असंतुष्ट है।
वाम दल चाहते हैं कि उन्हें “वोट शेयर” के हिसाब से ज्यादा सीटें मिलें।
ऐसे में महागठबंधन में एकजुटता बनाए रखना तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।
नए मतदाताओं की भूमिका: युवा तय करेंगे दिशा
इस बार लगभग 25 लाख नए युवा मतदाता पहली बार वोट डालेंगे।
यह वर्ग रोजगार, शिक्षा और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर बेहद मुखर है।
NDA सरकार पर बेरोजगारी को लेकर पहले से ही दबाव है, जबकि RJD इस मुद्दे को चुनाव का केंद्र बनाने की कोशिश में है।
अगर युवा वर्ग RJD के साथ जुड़ता है, तो यह परिणामों को पूरी तरह बदल सकता है।
जातीय समीकरण: अब भी राजनीति की धुरी
बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों से कभी अलग नहीं रही।
कुर्मी, यादव, दलित, और मुस्लिम मतदाता — ये चार वर्ग चुनावी गणित को निर्धारित करते हैं।
NDA पिछली बार अति पिछड़ों और दलितों पर केंद्रित था, जबकि RJD-Yadav और मुस्लिम गठजोड़ पर निर्भर रही।
लेकिन इस बार, “नए सामाजिक समीकरण” बनते दिख रहे हैं — खासकर शहरी और पढ़े-लिखे वर्ग में जो विकास की राजनीति चाहता है।
बीजेपी की रणनीति: मोदी मैजिक पर निर्भरता जारी
भले ही बिहार चुनाव राज्य स्तरीय हों, पर बीजेपी अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ना चाहती है।
मोदी का चेहरा आज भी NDA का सबसे बड़ा वोट बैंक है, लेकिन राज्य में स्थानीय नेतृत्व की कमी बीजेपी के लिए चिंता का विषय है।
बीजेपी की कोशिश है कि वह JDU और LJP के विवादों को संभालते हुए खुद को स्थिर विकल्प के रूप में पेश करे।
तेजस्वी यादव की छवि: नई पीढ़ी का नेता या पुराने ढर्रे का?
तेजस्वी यादव ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी छवि सुधारने की कोशिश की है।
अब वे “नए बिहार” की बात करते हैं — जिसमें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटल इंडिया जैसे मुद्दे शामिल हैं।
लेकिन विपक्ष उन्हें अब भी “वंशवाद” का प्रतीक बताता है।
यह छवि का संघर्ष उनके राजनीतिक भविष्य का रास्ता तय करेगा।
चुनावी माहौल: मुद्दों से ज़्यादा चेहरों की लड़ाई
2025 के चुनाव में मुद्दे भले मौजूद हों — जैसे बेरोजगारी, महंगाई, बिजली-पानी, सड़कें — लेकिन लड़ाई अब चेहरों की है।
नीतीश बनाम तेजस्वी, NDA बनाम RJD, और कहीं-कहीं बीजेपी बनाम चिराग — ये सब बिहार के चुनावी अखाड़े को गर्मा रहे हैं।
जनता अब देखना चाहती है कि “स्थिरता” के नाम पर कौन जीतता है और “परिवर्तन” की उम्मीद किस पर टिकती है।
निष्कर्ष: मुकाबला दिलचस्प लेकिन पेचीदा
बिहार चुनाव 2025 सिर्फ सत्ता की जंग नहीं, बल्कि गठबंधन की कसौटी भी है।
NDA को चिराग और सीट बंटवारे की चुनौती है, जबकि RJD अपने ही घर के झगड़ों से जूझ रही है।
इस बार का चुनाव परिणाम न केवल राज्य की राजनीति, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ा संकेत देगा कि जनता “पुराने चेहरों” पर भरोसा करती है या “नई सोच” को मौका देती है।





