बिहार के महागठबंधन में अंदरूनी लड़ाई, RJD, कांग्रेस आमने-सामने

By: Rebecca

On: Saturday, October 18, 2025 4:26 AM

बिहार के महागठबंधन में अंदरूनी लड़ाई, RJD, कांग्रेस आमने-सामने
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बिहार की राजनीति में एक बार फिर से राजनीति पारा चढ़ा गया है। निकट के निष्पक्ष मतभेद अब खुलकर सामने आ चुके हैं। 7 सीटों पर राजद और कांग्रेस के बीच टकराव ने गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। RJD इस निष्पक्ष संघर्ष ने न सिर्फ विपक्षी खेमे को कमजोर किया है, बल्कि बीजेपी खेमे को अप्रत्यक्ष तौर पर फायदा भी पहुंचाया जा सकता है। आइए, जानते हैं विस्तार से कि आखिर बिहार के निकट में यह संकट क्यों और कैसे गहराया।

निकट में बढ़ती असमानता – एक पुराना दर्द फिर उभरा

महागठबंधन को हमेशा से ही ‘विविधता में एकता’ का प्रतीक कहा गया, लेकिन इस बार यह विविधता ही दरार बनती दिख रही है। आरजेडी और कांग्रेस, दोनों समन्वित अपने-अपने वफादार वोटबैंक को साधने की कोशिश में हैं। यही वजह है कि सीट बंटवारे को लेकर असंतुष्ट लगातार गहरी जा रही है। कांग्रेस चाहती है कि 2019 के प्रदर्शन के आधार पर उसे पर्याप्त सीटें मिलें, वहीं आरजेडी अपनी प्रमुखता दिखाने पर अड़ी है।

7 सीटों पर सीधी टक्कर – सीटों की साख दांव पर

राज्य की 7 लोकसभा सीटों पर दोनों दलों ने उम्मीदवार उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार, भागलपुर, कटिहार, मधेपुरा, सासाराम, गया, और दरभंगा जैसी सीटें मुख्य विवाद का कारण बनी हुई हैं। ये वही सीटें हैं जहां कांग्रेस और आरजेडी दोनों की ऐतिहासिक पकड़ रही है। अब इन पर आमने-सामने मुकाबला गठबंधन के लिए आत्महत्या साबित हो सकता है।

तेज यादव की भूमिका – संतुलन साधने की मुश्किल जिम्मेदारी

तेजस्वी यादव, जो गठबंधन की युवा और प्रमुख चेहरा माने जाते हैं, इस समय एक कठिन मोड़ पर खड़े हैं। उन्हें आरजेडी की ताकत को निरंतर रखना है, लेकिन साथ ही कांग्रेस को नाराज़ भी नहीं करना चाहते। हाल ही में उन्होंने बयान दिया कि “गठबंधन में सभी पक्षों का सम्मान होना चाहिए, पर किसी की मजबूरी नहीं।” उनके इस बयान को कांग्रेस के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

कांग्रेस की रणनीति – संगठन के पुनरुत्थान की कोशिश

कांग्रेस, जो लंबे समय से बिहार में अपनी जमीन तलाश रही है, अब इस चुनाव को ‘रीवाइवल मोमेंट’ के रूप में देख रही है। पार्टी नेतृत्व चाहता है कि अधिक सीटों पर लड़कर संगठन को मजबूत किया जाए। वहीं पार्टी के अंदर भी कई युवा नेताओं का झुकाव है कि आरजेडी के साए में रहकर कांग्रेस का अस्तित्व धुंधला हो गया है। यही कारण है कि कांग्रेस अब खुलकर अपनी दावेदारी पेश कर रही है।

नीतीश कुमार का पैंतरा – राजनीतिक समीकरणों पर नजर

महागठबंधन में दरार की खबरें सामने आते ही, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका पर भी सबकी नजर है। हालांकि नीतीश इस बार बीजेपी के साथ हैं, लेकिन उनके राजनीतिक अनुभव और राजनेताओं की सोच से कोई इनकार नहीं कर सकता। वे हमेशा बदलते समीकरणों में अपनी जगह सुरक्षित रखते हैं। इस बार भी वे विपक्ष संकट से अप्रत्यक्ष लाभ उठा सकते हैं।

बीजेपी का फ़ायदा – विपक्षी दलों को राहत

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि बीजेपी के अंदर बढ़ते विवाद का सबसे बड़ा फ़ायदा बीजेपी को मिलेगा। एकजुट विपक्ष के बिना सत्ता पक्ष को चुनाव में मज़बूत स्थिति मिलती है। 2019 में भी जब कांग्रेस और आरजेडी अलग-अलग लड़े थे, तब बीजेपी-एनडीए को भारी बहुमत मिला था। अब अगर इतिहास खुद को दोहराता है, तो यह विपक्ष के लिए बड़ा झटका होगा।

वोटबैंक की राजनीति – मुस्लिम-यादव समीकरण पर असर

आरजेडी का पारंपरिक वोटबैंक यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण पर आधारित है, जबकि कांग्रेस को भी इन समुदायों में समर्थन मिल रहा है। ऐसे में अगर दोनों दल आमने-सामने आते हैं, तो वोटों का बंटवारा तय है। इसका सीधा फ़ायदा एनडीए समर्थकों को मिल सकता है। यही वजह है कि गठबंधन के वरिष्ठ नेता इसे “आत्मघाती कदम” कह रहे हैं।

जनता की प्रतिक्रिया – गठबंधन की विश्वसनीयता पर सवाल

बिहार के मतदाताओं के बीच भी यह सवाल उठा है कि जब सहयोगी दल सहमत नहीं हैं, तो जनता की समस्याओं का समाधान कैसे करेंगे? गठबंधन की यह अंतरिम लड़ाई जनता के दायित्वों पर चोट पहुंचा रही है। सोशल मीडिया पर भी लोग इसे ‘महागठबंधन नहीं, महाविरोधाभास’ कहकर ट्रोल कर रहे हैं।

गठबंधन की बैठकें और भविष्य की रणनीति

हाल ही में पटना में विधायकों के नेताओं की बैठक बुलाई गई थी, जिसमें सीट बंटवारे पर सहमति बनाने की कोशिश की गई। हालांकि अंदरखाने की खबरें मिलती हैं कि बातचीत अभी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। कांग्रेस का रुख सख्त है, जबकि आरजेडी का रुख है कि बड़ी पार्टी होने के रिश्तेदार उसे जिम्मेदार भूमिका मिलनी चाहिए। आने वाले हफ्तों में इस पर अंतिम फैसला लिया जा सकता है।

निष्कर्ष – एकजुटता ही सफलता की कुंजी

बिहार के विधायकों के लिए यह समय ‘अग्निपरीक्षा’ से कम नहीं है। विपक्ष को यह विकसित होगा कि व्यक्तिगत गतिविधियां सामूहिक लक्ष्य को कमजोर कर सकती हैं। अगर आरजेडी और कांग्रेस समय रहते सहमति नहीं बनाते, तो बिहार की राजनीति में विपक्ष की भूमिका सीमित हो सकती है। अंततः यह गठबंधन तभी सफल होगा जब सभी दल अपने मतभेदों को किनारे करके जनता के मुद्दों को प्राथमिकता देंगे।

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