बिहार चुनाव 2025: NDA और महागठबंधन के बीच टकराव बढ़ने के साथ चुनाव आयोग ने कमर कस ली है

By: Rebecca

On: Monday, October 6, 2025 4:26 AM

NDA और महागठबंधन के बीच टकराव बढ़ने के साथ चुनाव आयोग ने कमर कस ली है
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बिहार की राजनीति एक बार फिर चुनावी रंग में रंग चुकी है। 2025 का विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही राजनीतिक दलों की हलचल तेज़ हो गई है। NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और महागठबंधन के बीच जुबानी जंग से लेकर रणनीतिक तैयारी तक हर मोर्चे पर मुकाबला देखने को मिल रहा है। वहीं, चुनाव आयोग (EC) ने भी कमर कस ली है और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है।

चुनाव आयोग की तैयारियाँ तेज़ – निष्पक्षता पर फोकस

चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव 2025 को देखते हुए प्रशासनिक तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। बूथ पुनर्निर्धारण, सुरक्षा व्यवस्था, मतदाता सूची अपडेट और पोलिंग कर्मियों के प्रशिक्षण जैसे कार्यों को प्राथमिकता दी जा रही है। आयोग का लक्ष्य है कि इस बार मतदान प्रक्रिया पारदर्शी और तकनीकी रूप से सशक्त हो। डिजिटल वोटर आईडी कार्ड और VVPAT मशीनों के बेहतर इस्तेमाल पर भी ज़ोर दिया जा रहा है ताकि मतदाताओं का भरोसा मज़बूत बना रहे।

एनडीए की रणनीति – नीतीश कुमार के अनुभव पर दांव

एनडीए गठबंधन में इस बार भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका अहम मानी जा रही है। भाजपा और जदयू साथ मिलकर राज्य में अपनी विकास योजनाओं को प्रमुख मुद्दा बना रहे हैं। सड़क, शिक्षा, और महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों पर एनडीए जनता को यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि उनके शासन में बिहार ने स्थिरता और प्रगति दोनों हासिल की है हालांकि, विपक्ष एनडीए पर बेरोज़गारी और पलायन जैसे पुराने मुद्दों को लेकर हमला बोल रहा है।

महागठबंधन की चुनौती – युवा और बेरोज़गारी पर फोकस

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन बेरोज़गारी, शिक्षा और किसानों की समस्याओं को मुख्य मुद्दा बना रहा है।
तेजस्वी यादव लगातार यह कह रहे हैं कि बिहार को नई दिशा देने का वक्त आ गया है, जहां युवाओं को रोज़गार और किसानों को सम्मान मिले। महागठबंधन यह भी दावा कर रहा है कि एनडीए की सरकार सिर्फ़ आंकड़ों में विकास दिखाती है, ज़मीन पर नहीं।

वोट बैंक की लड़ाई – जातीय समीकरण फिर से केंद्र में

बिहार की राजनीति जातीय संतुलन के बिना अधूरी है। एनडीए और महागठबंधन दोनों अपने पारंपरिक वोट बैंक को मज़बूत करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। जहां एनडीए कुर्मी, सवर्ण और गैर-यादव ओबीसी पर भरोसा कर रही है, वहीं महागठबंधन यादव, मुस्लिम और दलित वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है। यह जातीय समीकरण ही तय करेगा कि किसके पक्ष में जनमत जाएगा।

नई पार्टियों की एंट्री – मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना

  • इस बार बिहार चुनाव में कुछ नई पार्टियाँ और चेहरे भी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं।
  • जन सुराज अभियान के संस्थापक प्रशांत किशोर (PK) भी राजनीतिक मैदान में सक्रिय हैं।
  • उनकी एंट्री से कई सीटों पर वोट बँटने की संभावना है, जो एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौती बन सकती है।
  • इसके अलावा, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी सीमांचल में असर डाल सकती है।

महिला वोटरों पर फोकस – दोनों गठबंधनों का ध्यान ‘साइलेंट वोटर’ पर

  • बिहार चुनावों में महिलाएँ हमेशा से एक निर्णायक भूमिका निभाती रही हैं।
  • चाहे शराबबंदी नीति हो या उज्ज्वला योजना, महिलाओं से जुड़ी नीतियाँ राजनीतिक समीकरण तय करने में अहम रहती हैं।
  • इस बार एनडीए ‘महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण’ को प्रमुख एजेंडा बना रहा है, जबकि महागठबंधन ‘महिला रोज़गार और शिक्षा’ पर ध्यान दे रहा है।
  • दोनों को उम्मीद है कि महिला वोटर इस बार भी निर्णायक भूमिका निभाएँगी।

चुनाव प्रचार का डिजिटल युग – सोशल मीडिया बना नया अखाड़ा

  • बिहार चुनाव 2025 में सोशल मीडिया सबसे बड़ा हथियार साबित हो रहा है।
  • फेसबुक, ट्विटर (X), इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर दोनों गठबंधन एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं।
  • डिजिटल कैंपेनिंग अब गांवों तक पहुँच चुकी है, जहाँ युवा मतदाता सोशल मीडिया के ज़रिए अपने नेताओं की नीतियों को परख रहे हैं।
  • चुनाव आयोग भी फेक न्यूज़ और गलत प्रचार पर सख्ती से निगरानी रख रहा है।

विकास बनाम वादे – जनता किसे चुनेगी?

  • हर चुनाव की तरह इस बार भी मुख्य सवाल यही है — क्या जनता विकास को वोट देगी या वादों को?
  • एनडीए अपनी पिछली योजनाओं का रिपोर्ट कार्ड लेकर मैदान में है, जबकि महागठबंधन बदलाव की राजनीति का नारा दे रहा है।
  • रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग जैसे विषय जनता की प्राथमिकता में हैं।
  • मतदाता इस बार ज्यादा जागरूक और समझदार नज़र आ रहे हैं, जो चुनावी प्रचार से ज़्यादा नीतियों पर ध्यान दे रहे हैं।

सुरक्षा और व्यवस्था – आयोग की सबसे बड़ी परीक्षा

  • बिहार जैसे बड़े राज्य में चुनाव कराना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।
  • इस बार EC ने सुरक्षा बलों की तैनाती, संवेदनशील बूथों की पहचान और मतदाता जागरूकता अभियान पर विशेष ध्यान दिया है।
  • इसके साथ ही, दिव्यांग और बुजुर्ग मतदाताओं के लिए विशेष व्यवस्था की जा रही है।
  • आयोग ने साफ कहा है कि “मुक्त, निष्पक्ष और भयमुक्त चुनाव” कराना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।

निष्कर्ष: बिहार का भविष्य तय करेगा जनता का जनादेश

बिहार चुनाव 2025 सिर्फ़ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि विकास के विज़न का चुनाव होगा।
एनडीए और महागठबंधन दोनों ही जनता को अपने-अपने वादों से लुभाने में जुटे हैं, लेकिन अंत में फैसला जनता के हाथ में है।
मतदाता अब सिर्फ़ जाति या पार्टी नहीं, बल्कि अपने क्षेत्र की तरक्की और अपने परिवार के भविष्य को देखकर वोट देने की सोच रखते हैं।

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