Chirag Paswan vs BJP: एनडीए सीट बंटवारे की बातचीत कहाँ अटक रही है?

By: Rebecca

On: Wednesday, October 8, 2025 4:43 AM

Follow Us

लोकसभा चुनाव 2025 की तैयारी के बीच एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में सीट बंटवारे को लेकर नई खींचतान शुरू हो गई है। एक तरफ हैं लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान, जो बिहार में अपने राजनीतिक कद को मजबूत करना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) है, जो संतुलन साधते हुए सभी सहयोगियों को साथ रखना चाहती है।
हालांकि दोनों के बीच बातचीत जारी है, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है।

सीटों की संख्या पर सबसे बड़ी खींचतान

सबसे अहम विवाद सीटों की संख्या को लेकर है। जानकारी के अनुसार, चिराग पासवान की पार्टी बिहार में 6 से 8 सीटों की मांग कर रही है, जबकि बीजेपी उन्हें 3 से 4 सीटों पर समझौते के लिए कह रही है। चिराग का कहना है कि एलजेपी (रामविलास) ने पिछले चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था, इसलिए उन्हें “सम्मानजनक” सीट शेयरिंग चाहिए।

चिराग पासवान का बढ़ता जनाधार

चिराग पासवान पिछले कुछ सालों में बिहार की राजनीति में खुद को एक युवा और स्वतंत्र नेता के रूप में स्थापित करने में सफल रहे हैं।उनकी “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” की रणनीति ने उन्हें युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बनाया है। अब वे बीजेपी से उसी के अनुपात में सम्मान और सीटों की अपेक्षा रखते हैं, ताकि एलजेपी को “सिर्फ प्रतीकात्मक सहयोगी” न समझा जाए।

बीजेपी की रणनीति — छोटे सहयोगियों का संतुल

बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है सभी सहयोगी दलों को साथ रखना। बिहार में पहले से ही जेडीयू (नीतीश कुमार) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा जैसे दल एनडीए का हिस्सा हैं। ऐसे में बीजेपी चाहती है कि सीटों का वितरण “संतुलित” रहे ताकि किसी पार्टी को न तो बहुत ज़्यादा और न ही बहुत कम हिस्सा मिले। यही कारण है कि वह चिराग की बढ़ी हुई मांग को तुरंत स्वीकार नहीं कर पा रही।

पुरानी नाराजगी का असर

2019 और 2020 के चुनावों में एलजेपी और बीजेपी के रिश्तों में खटास आई थी। चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे, जिससे एनडीए को नुकसान हुआ था। भले ही बाद में बीजेपी और चिराग के बीच फिर से तालमेल बना, लेकिन वह “विश्वास की कमी” अब भी दोनों के बीच कहीं न कहीं मौजूद है। इसका असर सीट बंटवारे की बातचीत पर साफ दिख रहा है।

चिराग की ‘किंगमेकर’ वाली सोच

चिराग पासवान खुद को अब सिर्फ “छोटे सहयोगी” के रूप में नहीं, बल्कि संभावित किंगमेकर के रूप में देखना चाहते हैं। वे बिहार में बीजेपी के बाद एनडीए का दूसरा सबसे मजबूत चेहरा बनना चाहते हैं। उनका मानना है कि अगर उन्हें कम सीटें दी गईं तो यह उनकी राजनीतिक छवि को कमजोर करेगा और एलजेपी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा।

बीजेपी का फोकस – राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय समीकरण

बीजेपी की नजर 2025 के लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों पर है। वह राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत गठबंधन बनाए रखना चाहती है, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि क्षेत्रीय दलों के बीच प्रतिस्पर्धा न बढ़े। इसी कारण बीजेपी एक सावधानीपूर्ण और चरणबद्ध सीट शेयरिंग नीति अपना रही है, ताकि किसी एक साथी को ज़्यादा बढ़त न मिल जाए।

एनडीए में अंदरूनी राजनीति और जेडीयू फैक्टर

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी एनडीए में वापसी के बाद फिर से सक्रिय भूमिका में है। बीजेपी को यह ध्यान रखना पड़ रहा है कि जेडीयू को भी पर्याप्त सीटें मिलें, क्योंकि नीतीश अभी भी बिहार की राजनीति का बड़ा चेहरा हैं। इस वजह से चिराग की मांगें बीजेपी के लिए और मुश्किल बन जाती हैं — क्योंकि एक तरफ जेडीयू को नाराज नहीं किया जा सकता, और दूसरी तरफ एलजेपी को नजरअंदाज करना भी जोखिमभरा है।

बातचीत के बावजूद ‘अटकाव’ क्यों?

कई दौर की मीटिंग्स हो चुकी हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस घोषणा नहीं हुई है। सूत्र बताते हैं कि दोनों पार्टियों के बीच सीटों की लिस्ट और उम्मीदवार चयन को लेकर मतभेद हैं। एलजेपी चाहती है कि उसे अपनी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की पूरी स्वतंत्रता मिले, जबकि बीजेपी चाहती है कि सभी निर्णय “साझे सहमति” से हों।

जनसंपर्क और पब्लिक पर्सेप्शन की जंग

दोनों दलों ने इस पूरे मुद्दे को अभी तक खुले टकराव में नहीं बदला है, लेकिन सोशल मीडिया और जनसभाओं में उनके बयानों से यह साफ झलकता है कि माहौल पूरी तरह सहज नहीं है। चिराग अक्सर “बिहार की असली आवाज़” बनने की बात करते हैं, जबकि बीजेपी “टीम एनडीए” की एकता पर ज़ोर देती है। यह पब्लिक पर्सेप्शन की लड़ाई आने वाले चुनावों में अहम भूमिका निभा सकती है।

आगे क्या हो सकता है?

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आने वाले हफ्तों में एनडीए में सीट बंटवारे पर सहमति बन सकती है, लेकिन इसके लिए बीजेपी को कुछ लचीलापन दिखाना पड़ेगा। वहीं, चिराग पासवान को भी यह तय करना होगा कि वे गठबंधन में रहकर अपनी ताकत बढ़ाना चाहते हैं या फिर “अलग राह” चुनकर खुद को चुनौतीपूर्ण स्थिति में डालना चाहते हैं। फिलहाल इतना तय है कि यह बातचीत सिर्फ सीटों की नहीं, बल्कि भविष्य की नेतृत्व राजनीति की दिशा भी तय करेगी।

निष्कर्ष

एनडीए में चल रही यह सीट बंटवारे की खींचतान सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है — यह आने वाले लोकसभा चुनावों में गठबंधन की स्थिरता और रणनीतिक एकता की परीक्षा है। चिराग पासवान की आक्रामक मांगें और बीजेपी की सतर्क रणनीति, दोनों ही अपने-अपने तरीके से राजनीति का हिस्सा हैं। देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में एनडीए इस “सीट शेयरिंग पजल” को किस तरह सुलझाता है — समझौते के रास्ते से या शक्ति प्रदर्शन के ज़रिए।

    For Feedback - feedback@example.com

    Join WhatsApp

    Join Now

    Leave a Comment