Bihar Election इस समय पूरे उफान पर है। जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें करीब आ रही हैं, राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ती जा रही है। आज का दिन खास इसलिए है क्योंकि इसे ‘रैली मंडे’ कहा जा रहा है जहां प्रियंका गांधी वाड्रा और अखिलेश यादव दोनों ही अपनी-अपनी पार्टियों के समर्थन में कई बड़ी रैलियों को संबोधित करने जा रहे हैं।
‘रैली मंडे’ का आगाज़ — एक ही दिन में बड़े नेता मैदान में
आज बिहार की सियासत का माहौल बेहद गर्म है। कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा दो रैलियों को संबोधित करेंगी, जबकि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव तीन रैलियों में जनता से संवाद करेंगे। यह दिन इस मायने में अहम है कि दोनों नेताओं की रैलियां एक ही दिन आयोजित हो रही हैं, जिससे विपक्षी एकता और रणनीति के संकेत मिलते हैं।
प्रियंका गांधी की रैलियां — महिला वोट बैंक पर फोकस
प्रियंका गांधी की आज की रैलियों का फोकस खास तौर पर महिला मतदाताओं और युवाओं पर रहेगा। कांग्रेस इस बार “लड़कियां ला सकती हैं बदलाव” जैसे स्लोगन के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है। पार्टी का दावा है कि बिहार में महिलाओं के लिए सुरक्षा, शिक्षा और रोजगार के मुद्दे उनकी प्राथमिकता में हैं। प्रियंका की रैलियां पटना और गया जिले में आयोजित होंगी।
अखिलेश यादव का मिशन बिहार — समाजवादी विस्तार की कोशिश
अखिलेश यादव तीन रैलियों में भाग लेंगे, जो उत्तर बिहार के सीमावर्ती जिलों में होंगी। समाजवादी पार्टी भले ही बिहार की मुख्य पार्टी न हो, लेकिन अखिलेश यादव इस चुनाव में महागठबंधन के सहयोगी के रूप में बड़ा संदेश देना चाहते हैं। उनका फोकस है — किसानों, नौजवानों और पिछड़े वर्गों पर, जो परंपरागत रूप से समाजवादी वोटबैंक माने जाते हैं।
महागठबंधन का एकजुट चेहरा
प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव की एक दिन में रैलियां होना यह भी दर्शाता है कि विपक्ष इस बार एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरना चाहता है। कांग्रेस, राजद और समाजवादी पार्टी के बीच तालमेल मजबूत करने की कवायद चल रही है। रणनीतिक रूप से, यह दिखाने की कोशिश है कि महागठबंधन केवल नाम भर का नहीं, बल्कि साझा विचारधारा का गठजोड़ है।
एनडीए बनाम विपक्ष — सीधी टक्कर की तैयारी
दूसरी ओर, सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन, जिसमें बीजेपी और जेडीयू शामिल हैं, पहले ही कई सभाएं और रोडशो कर चुका है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साझा सभाओं से NDA का कैम्पेन तेज़ी से आगे बढ़ा है। अब विपक्ष की रैलियां इस मुकाबले को संतुलित करती नज़र आ रही हैं। बिहार में एक बार फिर दो ध्रुवीय मुकाबले के संकेत मिल रहे हैं।
युवाओं और रोजगार पर केंद्रित भाषण
प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव दोनों के भाषणों में एक समानता है — युवाओं के रोजगार और शिक्षा के अवसरों की कमी पर सीधा निशाना। प्रियंका गांधी ने पहले भी कई मंचों से कहा है कि “रोजगार सिर्फ वादों से नहीं, योजनाओं से आता है।” वहीं अखिलेश यादव ने ट्वीट में लिखा, “युवा ही बिहार की ताकत हैं, उन्हें बेरोजगारी से मुक्ति दिलाना ही असली आज़ादी है।”
महिलाओं के सशक्तिकरण पर कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस की इस चुनावी मुहिम में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है। प्रियंका गांधी की टीम ने महिला सुरक्षा, सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स और स्वास्थ्य योजनाओं पर ‘महिला घोषणापत्र’ तैयार किया है। इसमें शिक्षा, मातृत्व लाभ और रोजगार को लेकर ठोस वादे किए गए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह रणनीति ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस के लिए समर्थन जुटा पाएगी।
अखिलेश यादव की रणनीति – बिहार में समाजवादी पहचान बनाना
अखिलेश यादव की कोशिश है कि समाजवादी पार्टी को केवल यूपी तक सीमित न समझा जाए। बिहार में वे खुद को एक राष्ट्रीय विपक्षी चेहरे के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि, “समाजवादी विचारधारा केवल एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश के गरीबों, किसानों और मजदूरों की आवाज़ है।” उनकी रैलियों में यूपी के कार्यकर्ताओं की भी भारी भागीदारी देखी जा रही है।
ग्रामीण इलाकों में भीड़ और जनता की प्रतिक्रिया
रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ उमड़ने की संभावना है। कांग्रेस और सपा दोनों ने सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव कवरेज और डिजिटल प्रचार को मजबूत किया है। स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में जनता के बीच महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की आय जैसे मुद्दे सबसे ज़्यादा गूंज रहे हैं।
चुनावी माहौल पर असर — विपक्ष की ऊर्जा में नया जोश
इन रैलियों के बाद बिहार का चुनावी माहौल और भी गर्म हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रियंका और अखिलेश की संयुक्त सक्रियता से विपक्ष को मजबूती और दिशा मिल रही है। हालांकि एनडीए की संगठनात्मक शक्ति अब भी बहुत मज़बूत है, लेकिन विपक्ष का यह नया जोश एक रोमांचक मुकाबले की ओर इशारा कर रहा है।
निष्कर्ष: बिहार की सियासत में नई करवट
‘रैली मंडे’ ने यह साफ कर दिया है कि बिहार चुनाव 2025 अब पूरी तरह से हाई-वोल्टेज मोड में प्रवेश कर चुका है। प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव की रैलियां न केवल विपक्षी एकता का प्रदर्शन हैं, बल्कि यह संदेश भी देती हैं कि जनता के मुद्दे रोजगार, महिला सुरक्षा और विकासफिर से केंद्र में लौट आए हैं।अब देखने वाली बात यह होगी कि इन रैलियों का प्रभाव जनता के वोटों तक कितना पहुंचता है और क्या विपक्ष इस बार सत्ता परिवर्तन की नींव रख पाएगा या नहीं।





